चंचल मन

कभी इधर कभी उधर ,
कभी धरा पर कभी गगन पर ,
कभी फुदकता कभी सुस्ताता ,
कभी हैं मौन कभी मगन ,
ये चंचल मन ।
कभी मुस्काए कभी मुरझाए ,
कभी विचरता कभी ठहरता ,
कभी हैं हंसता कभी हैं रोता ,
कभी हैं मौन कभी मगन ,
ये चंचल मन । – हर्षिता

“चंचल मन” के लिए प्रतिक्रिया 9

  1. बहुत ख़ूबसूरत और चंचल मन है हमारा 👍🏻♥️ ये सुन्दर कविता की लयिनें हमें सच्चाई ही दिखाई है 🌷🙏😊बहुत बधाइयाँ 👏

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      1. शुक्रिया शुभकामनाएँ🌹🙏💓🌹

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    1. WordPress k alawa mera aur koi social media account nhi hai

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      1. अति सुंदर
        अपने बहुमूल्य समय का यहाँ सृजन कीजिये।
        सुंदर रचनाओं के निर्माण में।

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