कभी इधर कभी उधर ,
कभी धरा पर कभी गगन पर ,
कभी फुदकता कभी सुस्ताता ,
कभी हैं मौन कभी मगन ,
ये चंचल मन ।
कभी मुस्काए कभी मुरझाए ,
कभी विचरता कभी ठहरता ,
कभी हैं हंसता कभी हैं रोता ,
कभी हैं मौन कभी मगन ,
ये चंचल मन । – हर्षिता
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