इंतज़ार

मैं बैठी अकेली इंतज़ार करती ,
उस पेड़ के नीचे ,
तकती रहती वो रास्ता ,
जहा से शुरू हुआ था ,
वो सब जो आज नहीं हैं ।
मैं इंतज़ार करती ,
तुम्हारे आने का नहीं ,
सपनों का ,
जो मैं खो चुकी थी ।
मैं इंतज़ार करती ,
प्रेरणा का ,
जो मैं खो चुकी थी ।
मैं बैठी अकेली इंतज़ार करती ,
उस पेड़ के नीचे ।

हर्षिता

“इंतज़ार” के लिए प्रतिक्रिया 4

  1. Thank you! Yes, it’s been a while. Hope you’re doing well too!

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