मैं इंसानियत हूं

मैं हिंदू हूं ,
जो मस्जिद के आगे सिर झुकाता है
जो गुरूद्वारे में भी माथा टेकने जाता है
जो चर्च में भी कैंडल जला कर आता है
जो मंदिर में दिया जलाने जाता है
क्योंकि मैं हिंदू ही नहीं भारतीय भी हूं ।
मैं मुस्लिम हूं ,
जो मंदिर के आगे झुक जाता हैं
जो जोर- शोर से लोहडी भी मनाता हैं
जो क्रिसमस में भी खुशियां मनाता हैं
जो नमाज़ अदा करने मस्जिद भी जाता हैं
क्योंकि मैं मुस्लिम ही नहीं भारतीय भी हूं।
मैं सिक्ख हूं ,
जो ईस्टर भी मनाता हैं
जो क़ुरान पढ़ना भी जानता हैं
जो होली में रंग भी लगाता हैं
जो वैशाखी भी मनाता हैं
क्योंकि मैं सिक्ख ही नहीं भारतीय भी हूं।
मैं ईसाई हूं ,
जो गुरुनानक के कदमों पर चलता हैं
जो गीता का ज्ञान भी ग्रहण करता हैं
जो ईद भी मनाता हैं
जो बाइबिल भी पढ़ता हैं
क्योंकि मैं ईसाई ही नहीं भारतीय भी हूं।
मैं धर्म हूं ,
जो लिंग, जाति की सीमाओं से परे हैं
इंसानियत की जिसके अंदर गहरी जड़े हैं
जो दिल में प्यार , होठों पर मिठास रखता हैं
जो हर बुराई से सबके साथ मिलकर लड़ता हैं
क्योंकि मैं धर्म ही नहीं इंसानियत भी हूं । - हर्षिता

“मैं इंसानियत हूं” के लिए प्रतिक्रिया 18

  1. बहुत सुन्दर कविता 👌🌷मैं भी बचपन से हिन्दू, मुस्लिम ,कृस्त्यन और गुरुद्वारा और बुध्व विहारा
    सब मन्दिरों में नमन करती हूँ क्यों कि ईश्वर एक है यही मैं मानती हूँ। stay safe 🌷🙏😊

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    1. सही कहा आपने । हमें भेदभाव जैसी तुच्छ चीजों से ऊपर उठकर मानवता की और कदम बढ़ाना चाहिए।

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  2. अति सुंदर भावपूर्ण कविता 👌

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    1. धन्यवाद अर्पणा जी

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      1. Welcome dear Harshita 😅
        But it was a slight mistake 😃 “अपर्णा ” Aparna is written like this 😂

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      2. अरे! मैंने आपका नाम गलत पढ़ लिया था।
        माफी

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  3. I LOVE THIS!..Your sentiments are so ecumenical…so tolerant and open and compassionate and wiling to accept the other..If only everyone felt the same…

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  4. This is a beautiful poem, and it’s unfortunate that more people don’t practice this idea.

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