आज कुछ तो है इन हवाओं में
जो बार – बार मुझे छू कर निकल रही है
जो मेरे लट को उड़ा रही है
जो मेरे दिल की धड़कन को तेज कर रही हैं
कहीं ये तुम्हारा कोई संदेश तो नहीं ?
आज कुछ तो हुआ बादलों को
जो बार बार खुशी से किलकारी मार रहे है
जो ना जाने कितनी देर से धरती की प्यास बुझा रहे है
जो एक अर्शे से जमी उदासी कि धूल को साफ कर रहे है
कहीं ये तुम्हारे स्वागत कि तैयारियों में लीन तो नहीं ?
आज इन बागों में भी कुछ प्रसन्नता तो हैं
जो बार बार फूलों कि खुशबू बिखेर रहे है
जो मंद मंद हवाओं में झूम रहे है
जो भवरों को बुलाकर उनके कानों में कुछ कह रहे है
कहीं इन्हें भी तुम्हारे आगमन कि प्रतीक्षा तो नहीं ?
आज इस तन्हाई में भी कुछ आमोद तो है
जो बार बार तुम्हारे आने के स्वपन देख रही है जो प्रकृति के खेल में तुमसे मिल रही है
जो हवाओं में तुम्हारे संदेश ढूंढ रही है
कहीं इसे तुमसे मिलने का भ्रम तो नहीं ?
– हर्षिता
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