संदेश तुम्हारा


आज कुछ तो है इन हवाओं में
जो बार – बार मुझे छू कर निकल रही है
जो मेरे लट को उड़ा रही है
जो मेरे दिल की धड़कन को तेज कर रही हैं
कहीं ये तुम्हारा कोई संदेश तो नहीं ?


आज कुछ तो हुआ बादलों को
जो बार बार खुशी से किलकारी मार रहे है
जो ना जाने कितनी देर से धरती की प्यास बुझा रहे है
जो एक अर्शे से जमी उदासी कि धूल को साफ कर रहे है
कहीं ये तुम्हारे स्वागत कि तैयारियों में लीन तो नहीं ?


आज इन बागों में भी कुछ प्रसन्नता तो हैं
जो बार बार फूलों कि खुशबू बिखेर रहे है
जो मंद मंद हवाओं में झूम रहे है
जो भवरों को बुलाकर उनके कानों में कुछ कह रहे है
कहीं इन्हें भी तुम्हारे आगमन कि प्रतीक्षा तो नहीं ?


आज इस तन्हाई में भी कुछ आमोद तो है
जो बार बार तुम्हारे आने के स्वपन देख रही है जो प्रकृति के खेल में तुमसे मिल रही है
जो हवाओं में तुम्हारे संदेश ढूंढ रही है
कहीं इसे तुमसे मिलने का भ्रम तो नहीं ?
– हर्षिता

“संदेश तुम्हारा” के लिए प्रतिक्रिया 14

  1. अति सुन्दर कविता आप ने रचाई है 🌷👍🏻♥️✍️ हवाओं का छूना , बादलों की किलकारी,बगीचे की फूलों की ख़ुशबू के साथ
    भँवरों की हलचल ये सब प्रकृति की सुन्दरता एकसाथ मिलकर आप में आकर्षण की बहारें खूब बरसने का अनुमान लगाया है
    इस काव्य में 🌷👍🏻👏बहुत बढ़िया और बधाइयाँ 🌷🙏🌷

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका आपने अपना कीमती समय मेरे विचारों को पढ़ने के लिए निकाला

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  2. ये भ्रम नहीं एहसास, आने वाले की आस है।

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    1. वाह! बहुत सुंदर
      आपकी एक पंक्ति संपूर्ण कविता से सुंदर है

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      1. ये तो सिर्फ आपकी कविता का सम्मान है

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      2. धन्यवाद हर्षित

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      1. Your always welcome Harshita! It was really nice to know about your page! Just amazing😉😊👍

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