कब तक उलझे रहोगे इसी क्रम में ,
कब तक जीते रहोगे यू मरते मरते ,
कब तक पड़े रहोगे तंद्रालस की कब्र में,
सुलझाओ वर्षों से उलझे इन धागो को ,
जीवन फूंक दो मरे हुए सपनों में ,
उठो,कदम बढ़ाओ लक्ष्य की ओर ।
कब तक बने रहोगे कठपुतली किस्मत की ,
कब तक दफनाओगे अपनी काबिलियत को,
कब तक जकड़े रहोगे आराम की बेड़ियों में,
लिखो अपनी तकदीर मेहनत की स्याही से
रखो विश्वास स्वयं पर , डटे रहो कर्तव्य पथ पर
छोड़ विश्राम की लालसा ,बढ़ो जीत की ओर ।
- हर्षिता
कब तक ?
“कब तक ?” के लिए प्रतिक्रिया 33
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धन्यवाद हर्षित 😊
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Thanks a lot Seema Ji
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Thank u Akanshakamal ❣️
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Yup 💯
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