विरह

हाय! विरह की यह तड़प
वेदना देती, कष्ट देती
मन को छिन्न भिन्न कर देती
हृदय में शूल सी चुभती
नयनों में जल भर देती
हाय!विरह की यह तड़प
आशा देती, ढांढस देती
मिलन के दृश्य जीवित कर देती
जागती आंखों से स्वपन दिखलाती
क्षण में स्वपन खंडित कर देती
हाय! विरह की यह तड़प
- हर्षिता

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